Monday, September 30, 2013

फिर बसंत आना है


तूफानी लहरें हों 
अम्बर के पहरे हों,
पुरुवा के दामन पर दाग बहुत गहरे हों,
सागर के मांझी, मत मन को तू हारना,
जीवन के क्रम मैं जो खोया है पाना है.
पतझर का मतलब है 
फिर बसंत आना है.

राजवंश रूठे तो
राज मुकुट  टूटे तो
सीतापति राघव से राजमहल छूटे  तो
आशा मत हार,
पर सागर के एक बार
पत्थर मैं प्राण फूंक सेतु फिर बनाना है
अंधियारे के आगे, दीप फिर जलाना है 
पतझर का मतलब है
फिर बसंत आना है.

घर-भर चाहे छोडे,
सूरज भी मुंह मोड़े 
विदुर रहे मौन, छीने राज्य, स्वर्ण रथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे,
पंचतत्व सौ पर हैं भारी बतलाना है 
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है 
पतझर का मतलब है 
फिर बसंत आना है

            - कुमार विश्वास

क्या समर्पित करूँ



 बाँध दूँ चाँद, आँचल के इक छोर में
माँग भर दूँ तुम्हारी सितारों से मैं
क्या समर्पित करूँ  जन्मदिन पर तुम्हें
पूछता फिर रहा हूँ बहारों से मैं

गूँथ दूँ वेणी में पुष्प मधुमास के
और उनको ह्रदय की अमर गंध दूं,
स्याह भादों भरी, रात जैसी सजल
आँख को मैं अमावस का अनुबंध दूं
पतली भू-रेख की फिर करूँ अर्चना
प्रीति के मद भरे कुछ इशारों से मैं
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं

पंखुरी-से अधर-द्वय तनिक चूमकर
रंग दे दूं उन्हें सांध्य आकाश का
फिर सजा दूं अधर के निकट एक तिल 
माह ज्यों बर्ष के माश्या मधुमास का
चुम्बनों की प्रवाहित करूँ फिर नदी
करके विद्रोह मन के किनारों से मैं
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं 

              -कुमार विश्वास

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