इश्क
में जीतने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
मेरी
हर हकीकत को ख़्वाब समझने वाले
मैं
तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
मेरे
बच्चो मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो
मैं
अकेला ही कमाने के लिए काफी हूँ
एक
अखबार हूँ औकात ही क्या मेरी
मगर
शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
- राहत इन्दोरी
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