जब हम बहुत छोटे थे,माँ की गोद में थे माँ का
स्तनपान करते थे तब हमने माँ का एक स्तन मुह में लेकर दुसरे स्तन
पर अपने
छोटे छोटे पैरों ने सा जाने कितनी लातें मारा पर उस माँ ने हमें दूध पिलाना बंद नहीं किया मित्रों लात खा कर भोजन देने की परंपरा को इस परमपिता परमेश्वर ने यदि किसी को दी है वो सिर्फ माँ को दी है माँ के अलावा ये ताकत किसी के पास नहीं है|
याद कीजियेगा जब हम उन दिनों चौके में बैठ कर
रसोई में खाना खाया करते थे और माँ खाना बनती थी उस वक़्त थाली में बैठ कर हमने जब भी इधर उधर देखा वो माँ समझ गयी और उसने
नमक का डिब्बा हमारी तरफ सरका दिया हमारे बिना बोले को समझने
वाली माँ जब हम उस माँ को खो देते हैं तो वो माँ हमें बहुत
याद आती है वो माँ जो हमरे परीक्षा देते जाते वक़्त दही की
कटोरी लेकर शगुन
बन कर खड़ीं हो जाती थी उसे जब हम खो देते हैं हमें बहुत याद आती है|
माँ संवेदना हैं ,भावना है एहसास है
माँ जेवण के फूलों में खुशबू का वास है
माँ रोते होए बच्चे का खुशनुमा पल्ला है
माँ मरुथल में नदी,या मीठा सा झरना है
माँ लोरी है गीत है प्यारी शी थाप हैं
माँ पूजा की थाली हैं ,
मंत्रो
का जाप है
माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है
माँ गालो पर पप्पी है ममता की धारा है
माँ झुलसते हुए दिलों में कोयल
की बोली हैं
माँ मेहँदी हैं , कुमकुम हैं सिन्दूर है रोली है
माँ कलम हैं दावत है स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक प्रवाही है
माँ त्याग है तपस्या हैं सेवा
है
माँ फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है
माँ अनुष्ठान है साधना है जीवन का हवन है
मान जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ी वाले हांथो में मजबूत
कंधो का नाम हैं
माँ कशी है ,माँ काबा है और चारो धाम है
माँ चिंता हैं याद हैं हिचकी है
माँ बच्चे किओ चोट पर सिसकी हैं
माँ चूल्हा धुआ रोटी और हनथो
का छाला हैं
माँ जिंदगी की कडुवाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है जगत है धुरी हैं
माँ बिना इस सृष्टी की कल्पना अधूरी हैं
तो माँ की ये कथा अनदी है ये अध्याय नहीं है
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नही है
तो माँ का महत्त्व दुनिया में कम हो सकता
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता
तो मैं कला की ये पंक्तियों माँ के नाम करता हूँ
और इस संसार की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ
-ओम व्यास
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