भारती का हाल देख हो गए
सजल नेत्र
मेरा मन द्वार आज जार जार
रो रहा
घुंघुरू व पायल का हाल
क्या सुनाए
आँचल का हर भाग तार तार हो
रहा
तो अंग अंग से रक्त बह रहा
भारती के
हर घाव घटी वाला देवदार हो
रहा
ऐसे में ही एक बार चले आओ
तुम सुभाष
देश को तुम्हारा इंतज़ार हो
रहा
- विनीत चौहान
No comments:
Post a Comment