कैसे भूलूं वह एक रात
तन हरर्सिंगार मन-पारिजात
छुअनें,सिहरन,पुलकन,कम्पन
अधरो से अंतर हिला दिया
तुमने जाने क्या पिला दिया.
तन की सारी खिडकिया खोलकर
मन आया अगवानी मै
चेतना और सन्यम भटके
मन की भोली नादानी में
थी तेज धार,लहरे अपार,भवरे थी
कठिन, मगर फिर भी
डरते-डरते मैं उतर गया
नदिया के गहरे पानी मै
नदिया ने भी जोबन-जीवन
जाकर सागर मैं मिला दिया
तुमने जाने क्या पिला दिया
जिन जख्मो की हो दवा सुलभ
उनके रिसते रहने से क्या
जो बोझ बने जीवन-दर्शन
उसमे पिसते रहने से क्या
हो सिंह्दवार परअंधकार
तो जगमग महल किसे दीखे
तन पर काई जम जाये तो
मन को रिसते रहने से क्या
मेरी भटकन पी गये स्वयम
मुझसे मुझको क्यो मिला दिया
तुमने जाने क्या पिला दिया
-कुमार विश्वास
This is amazing
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