नयी हवाओं की शौह्बत बिगाड़ देती है
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है
जो ज़ुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देकर अदालत बिगाड़ देती हैं
मिलाना चाहा है इंसा को जब भी इंसा से
तो सरे काम सियासत बिगाड़ देती है
हमारे पीर ,तकेमीर ने कहाँ था कभी
कि मियां ये आशिकी इज्ज़त बिगाड़ देती हैं
-राहत इन्दोरी
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