Sunday, September 29, 2013

हर बार तुम्हारा चेहरा


हर बार तुम्हारा चेहरा, हर बार तुम्हारी आँखे
हम खुद में कितना उतरे , हम खुद में कितना झांके

हर बार यही लगता हैं, अब कुछ भी याद नहीं हैं
हर बार धुँआ होता हैं, कोई फ़रियाद नहीं हैं

हर बार उम्मीदों वालो, सुबहें आकर कहती हैं
तुमसे बहार आने में, अब कोई विवाद नहीं हैं

पर तभी फूट पड़ती हैं, आँखों के सूखे जल में
हर बार तुम्हारी कोपल,हर बार तुम्हारे साखें

हर बार हमीं ने गया, दुनियां का दर्द कुवांरा
हर बार पिया हैं हसकर, आंसू का सागर सारा

थक कर सोये है जब जब, नीदों की हकबंदी में
हर बार छलक जाता हैं, आँखों से ख़्वाब तुम्हारा

मन पाखी ने जब जब चाहा, इच्छा का अम्बर छूना
हर बार उड़ने उमड़ी ,हर बार कटी हैं पांखें
                        
                            -कुमार विश्वास

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