जब भी मुँह ढक लेता हूँ,
तेरे जुल्फों के छाँव में,
कितने गीत उतर आते है ,
मेरे मन के गाँव में ........
एक गीत पलकों पे लिखना ,
एक गीत होंठो पे लिखना ,
यानि सारी गीत ह्रदय की ,
मीठी से चोटों पर लिखना,
जैसे चुभ जाता कोई काँटा नंगे पाँव में,
ऐसे गीत उतर आता, मेरे मन के गाँव में ,
पलके बंद हुई तो जैसे,
धरती के उन्माद सो गये ,
पलके अगर उठी तो जैसे ,
बिन बोले संवाद हो गये ,
जैसे धुप, चुनरिया ओढ़े, आ बैठी हो छाँव में,
ऐसे गीत उतर आता, मेरे मन के गाँव में ,
-कुमार विश्वास
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