मन तुम्हारा हो गया तो हो गया.
एक तुम थे जो सदा से अर्चना के गीत थे,
एक हम थे जो सदा से धार के विपरीत थे.
ग्राम्य-स्वर कैसे कठिन आलाप, नियमित साध पाटा,
द्वार पर संकल्प के लखकर पराजय कंपकंपाता.
क्षीणसा स्वर खो गया तो, खो गया.
मन तुम्हारा हो गया तो हो गया.
लाख नाचे मोर सा मन, लाख तन का सीप तरसे,
कौन जाने किस घड़ी, तपती धरा पर मेघ बरसे.
अनसुने चाहे रहे तन के सहज शरारी बुलावे,
प्राण में उतारे मगर जब सृष्टि के आदिम छलावे.
एक तुम थे जो सदा से अर्चना के गीत थे,
एक हम थे जो सदा से धार के विपरीत थे.
ग्राम्य-स्वर कैसे कठिन आलाप, नियमित साध पाटा,
द्वार पर संकल्प के लखकर पराजय कंपकंपाता.
क्षीणसा स्वर खो गया तो, खो गया.
मन तुम्हारा हो गया तो हो गया.
लाख नाचे मोर सा मन, लाख तन का सीप तरसे,
कौन जाने किस घड़ी, तपती धरा पर मेघ बरसे.
अनसुने चाहे रहे तन के सहज शरारी बुलावे,
प्राण में उतारे मगर जब सृष्टि के आदिम छलावे.
बीज बादल बो गया तो बो गया,
मन तुम्हारा हो गया तो हो गया.
-कुमार विश्वास
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