हो काल गति से परे चिरंतन ,
अभी यहाँ थे अभी यही हो
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कही हो
तुम्हारी राधा को भान है,
सकल चराचर हो समाये
बस एक मेरा भाग्य है मोहन
कि जिसमे होकर भी
तुम नहीं नहीं हो
न द्वारका में मिलें बिराजे,
तीर्थ की गलियों में भी नहीं हो ,
न योगियों के ध्यान में तुम
अहम जड़े ज्ञान में नही हो
तुम्हें ये जग ढूढता है मोहन
मगर इसे ये खबर नहीं है
बस एक मेरा है भाग्य कहाँ
अगर कही हो तो तुम यही हो
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