Friday, September 27, 2013

मोरे अंगना, आये सांझ सकारे


तन मन महका  जीवन  महका 
महक  उठे  घर-द्वारे 
जब- जब  सजना  
मोरे  अंगना, आये  सांझ  सकारे 

खिली  रूप  की  धुप 
चटक  गयीं  कलियाँ, धरती  डोली 
मस्त  पवन  से  लिपट  के  पुरवा, हौले-हौले  बोली 
छीनके  मेरी  लाज  की  चुनरी, टाँके  नए  सितारे 
जब- जब  सजना  
मोरे  अंगना, आये  सांझ  सकारे 

सजना  के  अंगना  तक  पहुंचे  
बातें  जब  कंगना  की   
धरती  तरसे, बादल  बरसे, मिटे  प्यास  मधुबन  की 
होठों  की  चोटों  से  जागे, तन  के  सुप्त  नगारे 
जब- जब  सजना  
मोरे  अंगना, आये  सांझ  सकारे 

नदिया  का  सागर  से मिलने  
धीरे-धीरे  बढ़ना 
पर्वत  के  आखरघाटी, वाली  आँखों से पढ़ना 
सागर  सी  बाहों  मे  आकर, टूटे  सभी  किनारे 
जब- जब  सजना  
मोरे  अंगना, आये  सांझ  सकारे

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