प्यार जब जिस्म की चीखो में दफ़न हो जाये
ओड्नी इस तरह उलझे की कफ़न हो जाये
घर के एसास जब बाज़ार की शर्तो में ढले
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले
लबों से असमान तक सबकी दुआ चुभ जाये
भीड़ के शोर जब कानो के पास रुक जाये
सीताम की मारी हुई वक़्त की आँखों में
नमी हो लाख मगर फिर भी मुश्कुरायेंगे
अँधेरे वक़्त में भी गीत गायेंगे
लोग कहते हैं की इस रात कि सुबह ही नहीं
कह से सूरज की रौशनी का तजुर्बा ही नहीं
वो लड़ाई को भले आर पर ले जाये
लोहा ले जाये की वो लोहे की धार ले जाये
इसकी चौखट से तराजू तक हो उनपर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाये
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब हमको
हमको कागज़ से हरा कर भी हर जायेंगे
अँधेरे वक़्त में भी गीत गायें जायेंगे
-कुमार विश्वास
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