Sunday, September 29, 2013

कुमार विश्वास ७


किसी के दिल की मायूसी जहाँ से हो के गुजरी हैं
हमारी साडी चालाकी वही पे खो के गुजरी हैं
तुम्हारी और हमारी रात में बस फर्क इतना हैं
तुम्हारी सो के गुजरी हैं , हमारी रो के गुजरी है

ये तेरी बेरुखी की हमपे आदत खास टूटेगी
कोई दरिया न ये समझे की मेरी प्यास टूटेगी
तेरे वादे का तू जाने मेरा वो ही इरादा है
की जिस दिन सांस टूटेगी उसी दिन आस टूटेगी

अभी चलता हूँ रस्ते को मैं मंजिल मान लू कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मन लूँ कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अँधेरे मुझको घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लू कैसे

ग़मों को आबरू अपनी ख़ुशी को गम समझते हैं
जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें बस हम समझते हैं
कशिश जिन्दा है अपनी चाहतो में जानेजां क्यूंकि
हमें तुम कम समझते हो, तुम्हें हम कम समझते हैं

मिले हर जख्म को ,मुस्कान से सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर, जहर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दास्ताँ में फर्क इतना हैं
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया

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