मैं
जिसे मुद्दत से कहता था वो पल के बात थी
आपको
भी याद होगा आजकल की बात थी.
रोज
मेला जोड़ते थे वे समस्या के लिए
और
उनकी जेब मे ही बंद हल की बात थी.
उस
सभा मे सभ्यता के नाम पर जो मौन था
बस
उसी के कथ्य मे मौजूद ताल की बात थी.
नीतियाँ झूठी पडी घबरा गए सब शास्त्र भी
झोंपड़ी के सामने जब भी महल की बात थी.
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