मैं भाव सूचि उन भावो की जो बिके सदा ही बिन तोले
तन्हाई हूँ हर उस ख़त कि जो पढ़ा गया है बिन खोले
जो कभी नहीं बरसा है खुलकर हर उस बदल का पानी
हूँ
लव कुश की पीर भी न गाई सीता की राम कहानी हूँ
जिनके सपनो के ताजमहल बनने से पहले टूट है
जिन हाथो में दो हाथ कभी आने से पहले ही छूट गए
धरती पर जिनके खोने और पाने की अजब कहानी हैं
किस्मत की देवी मान गयी पर प्रणय देवता रूठ गए
मैं मैली चादर वाले उस कबीरा की अमृत वाणी हूँ
लव कुश की पीर भी न गाई सीता की राम कहानी हूँ
कुछ कहते हैं मैं सीखा हूँ अपने खुद सीकर
कुछ जान गए मैं हसता हूँ भीतर भीतर आंसू पीकर
कुछ कहते हैं मैं हूँ विरोध से उपजी एक खुद्दार
विजय
कुछ कहते हैं मैं रचता हूँ खुदमें मरकर खुदमें जीकर
लेकिन मैं हर चतुराई की सोंची समझी नादानी हूँ
लव कुश की पीर भी न गाई सीता की राम कहानी हूँ
--कुमार विश्वास
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