Saturday, September 28, 2013

नुमाइश


कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मै कीमते लेकर घर आ गया
कल सलीबों पे फिर प्रीत मेरी चढी
और आँखों पे स्वर्णिम धुंआ छा गया

कल तुम्हारी सु-सुधि में भरी गन्ध फिर
कल तुम्हारे लिये कुछ रचे छन्द फिर
मेरी रोती सिसकती सी आवाज़ में
लोग पाते रहे मौन-आनन्द फिर
कल तुम्हारे लिये आन्ख फिर नम हुई
कल अजाने ही महफ़िल में, मै छा गया

कल सजा रात आंसू का बाज़ार फिर
कल ग़ज़ल-गीत बनाकर ढला प्यार फिर
कल सितारों-सी उँचाई पाकर भी मैं
ढूँढता ही रहा एक आधार फिर 
कल मैं दुनिया को पाकर भी रीता रहा 
आज खोकर स्वयं को तुम्हें पा गया. 

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