कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफ़िल मे भी अक्सर , अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की , कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
भरी महफ़िल मे भी अक्सर , अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की , कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न,
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है ,
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे,
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है..
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है ,
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे,
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है..
नजर मे शोखियाँ,लब पर मोहब्बत का तराना है
मरी उम्मीद की जद में, अभी सारा जमाना हैं
कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको
सिकंदर हूँ मुझे एक रोज खली हाँथ जाना हैं
मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इंकार करता हैं
भरी महफिल में रुस्वा वो मुझे हर बार करता है
याकि हैं सारी दुनिया को खफा हैं मुझसे लकिन
मुझे मालूम हैं फिर भी मुझी से प्यार करता हैं
बस्ती बस्ती घोर उदासी , पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा के मोल लुट गया घिस घिसरी का तन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन, एक मेरा दीवानापन
No comments:
Post a Comment