इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये.
ऐसे उजले लोग मिले जो, अंदर से बेहद काले थे,
ऐसे चतुर मिले जो मन से सहज सरल भोले-भाले थे.
ऐसे धनी मिले जो, कंगलो से भी ज्यादा रीते थे,
ऐसे मिले फकीर, जो, सोने के घट में पानी पीते थे.
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये.
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये.
जिनको जगत-विजेता समझा, मन के द्वारे हारे निकले,
जो हारे-हारे लगते थे, अंदर से ध्रुब- तारे निकले.
जिनको पतवारे सौपी थी, वे भवरो के सूदखोर थे,
जिनको भवर समझ डरता था, आखिर वोही किनारे निकले.
वो मंजिल तक क्या पहुचे, जिनको रास्ता खुद भटकाए
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये,
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये.
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये.
-कुमार विश्वास
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