तुम गए क्या, शहर सूना कर गये
दर्द का आकार दूना कर गये
जानता हूँ फिर सुनाओगे मुझे मौलिक कथाएँ
शहर भर की सूचनाएँ, उम्र भर की व्यस्तताएँ
पर जिन्हें अपना बनाकर, भूल जाते हो सदा तुम
वे तुम्हारे बिन, तुम्हारी वेदना किसको सुनाएँ
फिर मेरा जीवन, उदासी का नमूना कर गये
तुम गए क्या, शहर सूना कर गये
मैं तुम्हारी याद के मीठे तराने बुन रहा था
वक्त खुद जिनको मगन हो, सांस थामे सुन रहा था
तुम अगर कुछ देर रूकते तो तुम्हें मालूम होता
किस तरह बिखरे पलों में मैं बहाने चुन रहा था
रात भर हाँ-हाँ किया पर प्रात में ना कर गये
तुम गए क्या, शहर सूना कर गये
-कुमार विश्वास
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