Thursday, September 26, 2013

कुमार विश्वास - १


समंदर पीर का अन्दर है ,मगर रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है , इनको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन बना लेना मगर सुन  ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो तेरा हो नहीं सकता

इस उड़ान पर अब शर्मिंदा ,मैं भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
दुनिया कुछ भी अर्ध लगाये हम दोनों को मालूम हैं
छूट गयी जीने मरने की सारी कसमें
अपने अपने हाल में जिन्दा ,मैं भी हूँ और तू भी है

जो धरती से अम्बर जोड़े उसका नाम जवानी हैं
जो शीशे से से पत्थर तोड़े उसका नाम जवानी है
कतरा कतरा सागर तक जाती हैं हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड उसका नाम जवानी हैं

मेरे होठों पे आंसू हैं मेरी आँखों में सबनम है
ये दौलत हैं शौहरत कुछ जख्मों का मलहम है
अजब सी कसमकस हैं रोज जीने रोज मरने में
मुकम्मल जिन्दगी तो हैं मगर पूरी से कुछ कम है

मेरे जीने में मरने में तुम्हारे नाम आयेगा
मैं सांसे रोक लू फिर भी यही इलज़ाम आयेगा
हर एक धड़कन में तुम हो तो फिर अधिकार क्या मेरा
अगर राधा पुकारेगी तो फिर घनश्याम आयेगा

बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी , तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले

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