मांग की सिन्दूर-रेखा,
तुमसे ये पूछेगी कल..
यूँ मुझे सर पर सजाने का,
तुम्हें अधिकार क्या है ?
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था
तो कहेगी
गर वो सब कुछ बचपना था
तो कहो फिर प्यार क्या है
मांग की सिन्दूर-रेखा,
कल कोई अल्हड, अयाना
बाबरा
झोंका पवन का
जब तुम्हारे इंगितों पर
जब तुम्हारे इंगितों पर
गंध
भर देगा चमन में
या कोई चन्दा धरा का
या कोई चन्दा धरा का
रूप
का मारा बेचारा
कल्पना के तार से
कल्पना के तार से
नक्षत्र
जड़ देगा गगन पर
तब किसी आशीष का
तब किसी आशीष का
आँचल मचल कर पूछ लेगा..
यह नयन विनिमय अगर है
यह नयन विनिमय अगर है
प्यार
तो व्यापार क्या है
मांग
की सिन्दूर रेखा ..
कल तुम्हारे गन्धवाही
कल तुम्हारे गन्धवाही
केश, जब उड़कर किसी की
आँख को उल्लास का
आँख को उल्लास का
आकाश कर देंगे कही पर,
और साँसों के मलयवा
ही झकोरे मुझसरीखे
नवतरु को सावनी
बताश कर देंगे कही पर
तब यही बिछुए महावर
चूड़ियाँ गजरे कहेंगे,
इस अमर सौभाग्य के
श्रृंगार का आधार क्या
है ..
मांग
की सिन्दूर रेखा …
कल कोई दिनकर विजय का ,
सेहरा सर पर सजाये ,
जब तुम्हारी सप्तबरणी ,
छावं में सोने चलेगा ,
या कोई हरा थका
व्याकुल सिपाही जब
तुम्हारे ,
बक्ष पर धर सीश लेकर
हिचकियाँ रोने चलेगा ,
तब किसी तन पर कसी दो
बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
इस प्रणय जीवन समर में
जीत क्या है हार क्या है …
मांग की सिन्दूर-रेखा,
तुमसे ये पूछेगी कल..
यूँ मुझे सर पर सजाने का,
तुम्हें अधिकार क्या है ?
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था
तो कहेगी
गर वो सब कुछ बचपना था
तो कहो फिर प्यार क्या है
तब यही बिछुए महावर
चूड़ियाँ गजरे कहेंगे,
इस प्रणय जीवन समर में
जीत क्या है हार क्या है
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